कब्रगाह के पास से गुजरता हूं,
तो 2-4 शिला-समाधियों पर जलती हुई,
मोमबत्तियां भी देख लेता हूं।
फिर उसके प्रकाश में नए-नवेले
जगमगाते चमचमाते संगे-बुनियाद
भी नजर आ ही जाते हैं!
बस सोच कर इतना ही हैरान होता हूं कि
बचे हुए हजारों हेडस्टोंस में
कब रुक गई होगी मोमबत्तियों
के जलाने की प्रथा??
वक्त यूं ही नहीं गुजर जाता है,
और यूं ही नहीं बदल जाता है,
मृत्यु तक, मृत्योपरांत तक या
फिर पुनर्जन्म की परिकल्पना तक
शायद, जो हो ना हो!!
वहां तक........!!
कौन जलाता रहेगा मोमबत्तियां...?
क्यों जगमगाते चमचमाते रहेंगे हेडस्टोंस?
तो फिर?
बस अनंत को पहचानो,
जहां ईश्वर है, खुदा है, यिशु है!
मेरी यह कविता...
न हिंदू है, न मुसलमान है।
न इसाई है, न कृपाण है।
बस यही सोचता हूं कि
मानव जाति पर रहें
बस ऊपरवाला मेहरबान।
जयश्रीराम, आमीन, सतश्रीअकाल।
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