।।आधी अधूरी कहानी पर पूरी जिंदगानी।।
चूंकि आज श्रीमती जी का मन नहीं था कि वह टहलने की प्रक्रिया को पूरा करें, परंतु मेरी जिद्द के कारण उन्हें टहलने जाना पड़ा।और वास्तविकता तो यह है कि उम्र के साथ बढ़ते हुए अर्धनारीश्वर, अर्धांगिनी और बेटर हाफ जैसे सम्मानित शब्दों को सार्थक करते हुए मैडम की भी स्वास्थ्य का ख्याल रखना मेरा धार्मिक कर्तव्य बनता है।
खैर, पार्क में टहलने के दौरान मैंने दो वीर नारियों को काफी तेजी से चलते हुए देखा और धर्मपत्नी को सलाह दी कि इस तरह धीरे-धीरे टहलने से कसरत नहीं हो पाएगा तो आप भी उन वीर नारियों की तरह उनका पीछा करते हुए टहलें।
एक तो सुबह उठकर टहलने की अमरुचि श्रीमती जी के साथसाथ चल रहे थे, उस पर से इस व्यंग बाण, जिसे वस्तुतः मैंने सोचा नहीं था, परंतु बाद में एहसास हुआ कि श्रीमती जी ने अपने कदम जब काफी तेज बढ़ा दिये और लगभग दौड़ते हुए दोनों तेज धावक ना रियों को परास्त करते हुए आगे बढ़ने लगीं। इस नारी शक्ति का एहसास ने मुझे लगभग भया क्रांत कर दिया था और मैंने अपने भी पैर तेजी से उनकी तरफ बढ़ाने की प्रेरणा पाई।
चेहरा लाल, उत्तेजना से परिपूर्ण, हमारी सात जन्मो तक निभाने वाली श्रीमती जी के रूप से साफ झलक रहा था कि मुझे ऐसा वैसा मत समझो और मैं अपनी खैरियत के बारे में सोच रहा था कि किस प्रकार माता चंडी को शांत कर पाऊंगा?
लेकिन नसीब में कुछ और ही लिखा था जब मैं तेजी से पैर बढ़ाते हुए उनके पीछे पीछे पहुंचने ही वाला था कि दुर्भाग्यवश उनके पास पहुंचने के करीब होते ही उनका पैर मेरे पैरों से टकरा गया। गलती उनकी नहीं थी बल्कि उस व्यंग बाण के संताप की थी, जो मैंने कुछ देर पहले छोड़ा था और परिणाम स्वरूप गिरते-गिरते वह संभली भले ही उन्हें संभाल ने में मेरा पूरा योगदान था!
पर होनी को कौन टाल सकता है। वातावरण में सूरज की गर्मी बिना सूरज के बढ़ गई थी ठंडी ठंडी प्रभात की हवाएं मुझे ऐसी लग रही थी की टाटा की लोहे गलाने वाली फैक्ट्री के पास से गुजर रहा हूं। संभलते ही श्रीमती जी ने अपनी बौखलाहट मुझ पर पटक डाली :
-मार देते क्या?"
मैंने वस्तुतः दोनों हाथ जोड़े हुए सर झुकाए हुए वाली स्थिति में थोड़ा सा स्तब्ध रह गया। "थोड़ा सा स्तब्ध" इसलिए कि इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृति महीने 2 महीने भर में हो ही जाती है। जो कभी-कभी घंटों या एक-दो दिन चल जाती है या फिर कुछ बहुमूल्य उपहार आदि की प्रस्तुति के बाद रास्ते पर आ जाती है।
पर आज की परिस्थिति कुछ वैसी न लग रही थी और मुझे पूरी आशंका थी कि यह सप्ताह मेरा अच्छा नहीं गुजरेगा।
खैर उनके गरजते बरसते ही बगल से वीर तेज धावक ना रियां घबरा गई और पूछ बैठी... "क्या हुआ।"
"होगा क्या" मेरे बेरुखे स्वर, जैसा कि अक्सर होता नहीं है, क्योंकि नारियों के सम्मान मैं मैं कोई कमी नहीं रखता कर ता, पर बड़बड़ाती दोनों वीर नारियों की आवाज मेरे कानों में आ रही थी...
"ऐसा मानुस नहीं देखा?"
सारी बातों की दुश्चिंता को दूर करते हुए मेरा कंसंट्रेशन वापस तुरंत श्रीमती जी पर पलों में लौट आया और मैंने प्यार से सॉरी बोला। पर इस सॉरी ने आग में घी का काम किया और पार्क में घूमने के बजाय उनका रास्ता घर की ओर बदल गया।
चलिए कहानी तो इतनी ही है। किसी तरह अपने सारे अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए मान मनौ व्वल कर स्थिति को काफी हद तक काबू में कर लिया। बस एक बात कहने को रह गई इस घटना के तुरंत पहले मैंने एक प्रेमी जोड़े को जो हमारे ही आसपास टहलते जा रहे थे, आपस में टकराकर गिर गए थे, परंतु दोनों ने एक दूसरे को सहारा देकर सॉरी बोलकर मुस्कुराते हुए अपनी पगबाधा पूरी करने का निश्चय किया था।
पता नहीं उनकी शादी हुई थी या नहीं, पर मेरी शादी को तो 33 साल हो चुके हैं। पर चलिए, ऊपर वाले की कृपा लगता है मेरा सप्ताह शायद अच्छा गुजरने वाला है, क्योंकि चाय के साथ कल ही रिलायंस स्टोर से खरीदी हुई शानदार मेरे पसंद की चीनी वाले बिस्किट लेकर मुस्कुराते हुए मेरी अर्धांगिनी जी, मेरे सामने खड़ी है😁🤔
#३३साल_का_महत्व